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मधुमेह रोग , रोकथाम और उपचार

          मधुमेह आजकल के सर्वाधिक प्रचलित रोगों में से एक है । बहुत से लोग इसे आधुनिक सभ्यता का अभिशाप कहते हैं। अमेरिका में इसे मृत्यु का आठवां और अंधेपन का तीसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है। यही नहीं ये आंकड़े भयावह ढंग से बढ़ रहे हैं और इनके बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण रहन-सहन की हमारी आदतों में हो रहा बदलाव है ।
           आजकल पहले से कहीं अधिक संख्या में युवक और यहाँ तक गए की बच्चे भी मधुमेह से ग्रस्त दिखायी देते हैं। निश्चित रूप से इसका एक बड़ा कारण पिछले 4-5 दशकों में सफेद चीनी, मैदा तथा ओजहीन खाद्य उत्पादों का हमारे द्वारा किये जाने वाला व्यापक प्रयोग माना जा सकता है।
             जनवरी, 2004 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में “डायबिटीज और रिह्यूमेटोलोजी” पर आधारित सेमिनार में डायबिटीज पर संस्थान द्वारा किए गए शोध का हवाला देते हुए बताया गया कि 14 से 25 साल की उम्र के लोगों में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। कारण है मोटापा और आरामतलब लाइफ स्टाइल। स्कूलों में पिज्जा, चिप्स, कोल्ड ड्रिंक्स के ज्यादा इस्तेमाल के साथ आम खान- पान में रिफाइंड खाना, पालिश किए गए खाद्य पदार्थ और खाने में फाइबर की कमी, डायबीटीज की बढती संख्या का मुख्य कारण हैं।
       Q1. मधुमेह का वैज्ञानिक परिचय क्या है?
        मधुमेह को बैज्ञानिक शब्दावली में डायबिटीज मेलाइट्स के नाम से जाना जाता है यह यूनानी भाषा के शब्द ‘डाइबिटीज’ का अर्थ लैटिन भाषा के शब्द ‘मेलाइट्स’से मिलकर बना है। ‘डाइबिटीज’ का अर्थ है–होकर निकलना या प्रवाहित होना तथा ‘मेलाइट्स’ का अर्थ है मधु। इस प्रकार डाइबिटीज मेलाइट्स का अर्थ हुआ मधु का प्रवाहित होना। यह रोग शरीर की कार्यरिकी में हुई गड़बड़ियों के परिणाम स्वरुप उत्पन्न होता है इसे शरीर के चयापचय से संबंधित एक रोग के रूप में जाना जाता है जो अग्नाशय में स्थित विशेष लैंगरहैंस द्विपिकाओं द्वारा एक विशिष्ट हारमोन इन्सुलिन का पर्याप्त मात्रा में निर्माण न कर पाने के कारण होता है। यह हार्मोन शरीर को शर्करा के सामान्य प्रयोग के लिए समर्थ बनाता है। इसकी कमी के फलस्वरूप रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती हैं जब यह एक निर्धारित स्तर तक पहुँच जाती है तो गुर्दे इसके अतिरिक्त मात्रा को मूत्र में निष्कासित कर देते हैं। इसलिए रक्त शर्करा की अधिक मात्रा की जाँच के लिए चिकित्सकों द्वारा मूत्र के परिक्षण का परामर्श दिया जाता है मोटे शब्दों में कहें तो डायबिटीज का अर्थ है रक्त में चीनी की मात्रा का बढ़ जाना, जो इन्सुलिन के निर्माण में गड़बड़ी से होता है।
           इन्सुलिन का काम रक्त में चीनी के स्तर को नियंत्रण करना है।

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       Q2.भारत में मधुमेह की क्या स्थिति है? पूरे विश्व में मधुमेह का फैलाव बढ़ रहा है। आज विश्व के 3 प्रतिशत से 12 प्रतिशत लोग या तो मधुमेह सी पीड़ित हैं अथवा उनके मधुमेह से पीड़ित हैं अथवा उनके मधुमेह से पीड़ित होने की संभवना है। समाचार पत्रों में प्रकाशित “विश्व स्वास्थय संगठन” की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार “ सन 2025 तक भारत दुनिया का डायबिटीक कैपिटल हो जाएगा। यानि उस वक्त तक डाइबिटीज के सबसे अधिक रोगी भारत में होंगे और उनकी संख्या यहाँ लगभग 5.7 करोड़ होगी। जहाँ तक देश की राजधानी दिल्ली का सवाल है तो यहाँ की कुल आबादी (लगभग 1.45 करोड़ ) के 12 फीसदी लोग डाइबिटीज के घोषित मरीज हैं” “भारतीय मधुमेह संगठन” के अनुसार शहरी जीवन शैली में बदलाव, अधिक मसालेदार भोजन, कम व्यायम, बढ़ता तनाव, जेनेटिक तथा पर्यावरणीय कारणों से मधुमेह का खतरा 60% तक अधिक बढ़ जाता है । मधुमेह के रोगियों में अन्य रोगियों की तुलना में हृदयघात का तीन गुना अधिक हो जाता है । उपर्युक्त आंकड़े यह स्पष्ट संकेत करते हैं की मधुमेह एक गंभीर समस्या के रूप में उभर कर हमारे सामने आया है ।
           समाचार पत्रों में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग चार करोड़ भारतीय मधुमेह के साथ जी रहे हैं ।
      Q3.क्या भारत में मधुमेह रोग अभी फैला है? भारत में मधूमेह का इतिहास काफी पुराना है। ईसा पूर्व पाँचवी शताब्दी में भारत के प्रसिद्ध चिकित्सा विज्ञानी सूश्रूत ने मधूमेह का वर्णन किया था। उन्होंने कहा था कि इस रोगी का मूत्र मीठा हो जाता है। मधुमेह से बचने के लिए उनहोंने उपवास, मीठे पदार्थों से परहेज तहत जड़ी-बूटियों के सेवन की सलाह की थी।
          Q4. बच्चों, युवा एवं वयस्क पुरूषों/महिलाओं में से मधुमेह किसे अधिक प्रभावित करता है? हालाँकि मधुमेह बच्चों को उतना प्रभावित नहीं करता जितना की वयस्कों को फिर भी यह एक शिशु को भी प्रभावित कर सकता है । ऐसा देखा गया है कि मधुमेह से पीड़ित वयस्क प्राय: 45 वर्ष से 55 वर्ष तक की आयु के मध्य के होते हैं। मधुमेह से ग्रस्त युवाओं में प्राय: वंशानुगत कमजोरी होती है तथा कई बार तो यह कमजोरी अत्यधिक गंभीर हो जाती है। मधुमेह से ग्रस्त तीन लोगों में से दो महिलाएँ होती हैं। आविवाहित स्त्रियों की अपेक्षा विवाहित स्त्रियों में मधुमेह का प्रतिशत बहुत अधिक पाया जाता है इसका कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है पर ऐसा माना जाता है कि इसका संबंध गर्भावस्था के दौरान होने वाले ग्रंथिमय परिवर्तनों से है। ये परिवर्तन शरीर द्वारा स्टार्च और शर्करा का इस्तेमाल किए जाने के तरीकों को प्रभावित कर सकते है

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            Q5. मधुमेह किन लोगों में अधिक पाया जाता है ?
      मधुमेह ऐसे लोगों में प्राय: अधिक पाया जाता है जो कार्यालय के बैठे रहने वाले कामकाज उत्पन्न मानसिक तनाव से थक जाते हैं या जो अपने कार्यों की आधिकता की वजह से प्राय: तनावग्रस्त रहते हैं तथा जिनके पास व्ययाम करने के लिए समय अभाव होता है। मधुमेह दुबले- पतले की अपेक्षा मोटे लोगों को अधिक प्रभावित करता है। आधुनिक वैज्ञानिक खोजें इस तथ्य की ओर संकेत करती हैं कि मधुमेह के प्रादुर्भाव में मानसिक कारणों का बहुत बड़ा योगदान है । अत्यधिक तनाव, किसी अत्याधिक प्रिय का वियोग तथा नौकरी एवं व्यवसाय की बार-बार की तकलीफें कई बार स्वास्थ्य को प्रभावित करके प्रत्यक्ष रूप से अमाशय संबंधी गंभीर गड़बड़ियां उत्पन्न कर देती हैं जिसका परिणाम मधुमेह के रूप में हमारे सामने आता है। यही नहीं कई बार कतिपय दवाएँ भी व्यक्ति को अस्थायी मधुमेह का शिकार बना देती हैं ।
           ऐसा देखा गया है कि उन लोगों में मधुमेह का पूर्व इतिहास होने की संभावना अधिक होती है जिनके परिवार में मधुमेह का पूर्व इतिहास रहा हो या जो मोटापे से ग्रस्त हों। “विश्व स्वास्थय संगठन” ने भी मोटापे को मधुमेह का एक बड़ा कारण माना है। इसके अलावा ऐसे व्यक्ति जिनके रक्त में शर्करा का स्तर तनाव की स्थिति में सामान्य से अधिक हो जाता है तथा बार–बार गर्भपात कराने वाली तथा जन्मजात विकृतियों से ग्रस्त बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं में भी मधुमेह की संभावना अधिक होती है ।  मधुमेह के प्रमुख लक्षण क्या हैं? मधुमेह का सर्वप्रमुख लक्षण बार-बार मूत्रत्याग की इच्छा का प्रकट होना है । अन्य लक्षणों में अत्यधिक प्यास लगना (रोगी का मुख सूख जाता है तथा वह अपर्याप्त पानी की शिकायत करता है ) भूख, वजन कम होना, जल्दी थक जाना, चोट एवं घाव का धीरे-धीरे भरना, नेत्रज्योति में परिर्वतन,शरीर के कुछ स्थानों पर तीव्र खुजली, उँगलियों एवं पैर के अंगूठे में दर्द तथा दुर्बलता एवं उनींदापन आदि मुख्य हैं । मधुमेह के साथ प्राय: पैरों के रक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न होने की प्रवृति होती है । इसके साथ ही विषक्त स्थितियों जैसे फोड़े आदि के प्रति प्रवणता होती है । कई बार पैर पर लगी हुई एक चोट मधुमेह व्रण में बदल सकती है और जब तक रक्त में शर्करा की बहुलता है इस व्रण का ठीक हो पाना कठिन जो जाता है परिणामस्वरूप मधुमेह से ग्रस्त व्यक्ति के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपने पैरों एवं त्वचा की अच्छी तरह से देखभाल करे तथा उसे चोट – चपेट से बचाए ।
          मधुमेह से ग्रस्त व्यक्ति को अपने बाह्य परिधीय रक्त परिसंचरण की देखरेख के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए । उसे व्रण व्यक्ति को अपने बाह्य परिधीय रक्त परिसंचरण की देख-रेख के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए । उसे धूम्रपान तुरंत छोड़ देना चाहिए क्योंकि धूम्रपान से रक्त परिसंचरण तंत्र की पतली रक्त वाहिकाओं और  कोशिकाओं में संकुचन उत्पन्न होता है । इसलिए मधुमेह से ग्रस्त रोगियों को अपने पैरों और अंगों को गर्म रखने की व्यवस्था रखनी चाहिये ।
              मधुमेह के और भी अनेक लक्षण हैं जैसे- पीठ का तिरछापन टांगों में भारीपन सुन्न और सूजे हुए पैर अत्यधिक प्यास कमर में कड़ापन नपुंसकता बीच बीच में अपच की शिकायत उत्तेजक पदार्थों को खाने की इच्छा मूँह में शुष्कता गुर्दों में पीड़ा का अनुभव क्षय रोग का बुखार उदासीनता निराशापूर्ण मानसिक स्थिति मौन विषाद दुर्बलता मोटापा एवं ग्लानि आदि मधुमेह का निदान कैसे होता है? मधुमेह के प्रौढ़ रोगियों में प्रारंभिक अवस्था में सामान्यता: मधुमेह का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। ऐसे रोगियों में मधुमेह का निदान अचानक ही होता है जैसे :-
1. दुर्घटना हो जाने पर
2.आपरेशन कराने से पूर्व
3.किसी अन्य रोग के निदान के लिए परिक्षण कराने पर प्राय: मधुमेह के लक्षण इतने धीरे-धीरे प्रकट होते हैं कि साधारणत: रोगी का ध्यान उनकी तरफ नहीं जाता। मूत्र और रक्त में शर्करा की जाँच कराने पर ही अचानक रोग का पता चलता है। इसीलिए मधुमेह का पारिवारिक इतिहास रखने वाले व्यक्तियों तथा प्रौढावस्था में पहुँचने पर सभी व्यक्तियों को मधुमेह का कोई लक्षण न दिखायी देने पर भी मूत्र और रक्त की जाँच साल में एक–दो बार करा लेने की सलाह चिकित्सा द्वारा दी जाती है।

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         Q6. मधुमेह के निदान के लिए कौन-कौन से परिक्षण किए जाते हैं ?
      मधुमेह के निदान के लिए कई परिक्षण किए जाते हैं। जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं –
      1.बेनेडिक्ट टेस्ट – ग्लूकोज आक्सीडेज टेस्ट – खाली पेट रक्तशर्करा की जाँच – भोजन लेने या 75 से 100 ग्राम ग्लूकोज लेने के बाद रक्त शर्करा की जाँच – ग्लूकोज टोलरेंस टेस्ट क्या घर में भी रक्त शर्करा की जाँच की जा सकती है ? हाँ। ग्लूकोमीटर उपकरण की सहायता से रक्त के स्तर की जाँच घर में भी की जा सकती है। के स्तर की जाँच घर में भी की जा सकती है। मधुमेह का रोगी इस उपकरण से यह ज्ञात कर सकता है कि उसकी रक्त शर्करा का स्तर क्या है तथा उसका रोग नियंत्रण में है अथवा नहीं। ऐसे रोगियों के लिए जिनकी रक्त शर्करा का स्तर बार–बार घटता-बढ़ता रहता है, यह विधि अत्यंत उपयोगी है। ऐसे रोगियों को चाहिए की प्रत्येक बार जाँच के पश्चात् रक्त में शर्करा के स्तर को डायरी में नोट करते रहें ।
       जैसे दिनांक 19.1.2020 समय 10:00 रक्त शर्करा का स्तर 140 एम्. जी./डी.एल. –
           Q7. मधुमेह होने के कुछ और भी कारण हैं ?
   मधुमेह होने के कुछ द्वितीयक कारण भी हो सकते हैं । जिनमें से प्रमुख निम्न हैं – 
A.अनुवांशिक कारण
B.अग्नाशय शोथ
C.औषधियों के सेवन से उत्पन्न कारण
D.मानसिक तनाव एवं चिंता
E. शारीरक श्रम का अभाव या श्रम रहित दिनचर्या
F. गलत रहन-सहन
G.मधुमेह के लिए उत्तरदायी अन्य कारणों में व्यायाम के अभाव एवं खान-पान में बदलाव के कारण तेजी से बढ़ता मोटापा, त्वरित गति से होता शहरीकरण, बढती सुविधाओं के कारण व्ययाम की कमी, परिष्कृत, गरिष्ट एवं तामसिक आहार, फ़ास्ट फ़ूड का अधिक प्रयोग तथा तनावपूर्ण जीवनचर्या आदि प्रमुख हैं । किसी व्यक्ति में लगातार रहने वाला भावनात्मक तनाव रक्त प्रवाह में हर्मोस की क्रमशः वृद्धि करता रहता है जो अंतत: रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा कर मधुमेह का कारण बनता है ।
            Q8. मधुमेह कितने तरह के होते है?
मधुमेह को दो प्रमुख वर्गों में वर्गों में वर्गीकृत किया गया है ।
        ये हैं – टाइप 1 –इन्सुलिन पर निर्भर मधुमेह
                 टाइप 2– इन्सुलिन पर अनिर्भर मधुमेह पहले वर्ग में किसी भी कारणवश अग्नाशय पर्याप्त मात्रा में इन्सुलिन का निर्माण नहीं कर पाता है। फलस्वरूप ऐसे रोगियोँ  को इन्सुलिन देकर शर्करा के चयापचय के योग्य बनाया जाता है। इसलिए इस वर्ग के रोगियों को टाइप वन मधुमेही या इन्सुलिन पर निर्भर मधुमेही कहते हैं। यह प्राय: बच्चों तथा युवाओं  में पाया जाता है। इसे जूवेनाइल डायबिटीज भी कहते हैं। अधिक आयु वर्ग के लोग भी इससे पीड़ित हो सकते हैं इस वर्ग में अग्नाशय से पर्याप्त इन्सुलिन निकलता तो है लेकिन वह ठीक से इस्तेमाल नहीं हो पाता। ऐसे रोगियों को खाने वाली दवाएँ देकर शर्करा के चयापचय के योग्य बनाया जाता है। इसलिय इस वर्ग के रोगियों को टाइप टू मधुमेही या इन्सुलिन पर अनिर्भर मधुमेही कहते हैं। यह अधिकतर प्रौढ़ावस्था  में होता है। पर जीवन शैली में होने वाले नकारात्मक परिवर्तनों के फलस्वरूप अब यह किशोरों और बच्चों में भी पाया जाने लगा है। इस वर्ग के रोगी अधिकांशत: मोटापे से ग्रस्त होते हैं। रोगियों में रोग के लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होते हैं तथा कई बार तो इस प्रक्रिया में वर्षों लग जाते हैं । जयपुर मेडिकल एसोसिएशन की ओर से जनवरी 1997 में “मधुमेह के उपचार में नवीनतम विकास” विषय पर आयोजित एक गोष्टी में अमेरिका के मेयो क्लिनिक एंड मेडिकल स्कूल के बारे में बता गया की यदि फास्टिंग ग्लूकोज का स्तर 200 मिलीग्राम से कम हो तो दवा के स्थान पर व्यायाम, भोजन पर नियंत्रण और आहार में परिवर्तन लाकर रोग का उपचार करना चाहिए। उन्होंने बताया की भारत में अमेरिका से अधिक वृद्ध अवस्था वाले मधुमेह रोगी हैं । उनका कहना था की रोग से बचाव के लिए उच्चरक्तचाप, धूम्रपान, मोटापा और रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा पर नियंत्रण रखना चाहिए । इसके आतिरिक्त तनाव जन्य मधुमेह भी काफी उभर कर सामने आ रहा है ।
          कई चिकित्सा इसको एक अलग वर्ग के रूप में मान्यता देते हैं । प्री- डायबिटीज क्या हैं? प्री- डायबिटीज उन लोगों को कहते हैं जितने रक्त में चीनी की मात्रा ज्यादा होती है । पैरों और साँस से आ रही बदबू से ऐसे लोगों की पहचान की जा सकती है । मधुमेह की रोकथाम के लिए ऐसे लोगों की पहचान पर आज डाक्टरों द्वारा ज्यादा जोर दिया जा रहा है।

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        Q9. मधुमेह की जटिलताएँ क्या-क्या हैं?
         मधुमेह एक ऐसा रोग है जिसकी जटिलताएँ काफी अधिक हैं । इन जटिलताओं बरतने पर ये रोगी को काफी हानि पहुँचा सकती हैं इन जटिलताओं में प्रमुख हैं –
1. रोगी को बार- बार संक्रमण होना
2.घाव होने पर आसानी से न भरना
3. दृष्टि पटल विकृति
4.तंत्रिका विकृति
5.मधुमेह कीटोन अम्ल्य ता
6. हृदय वाहिकीय विकृति
7.मूत्रमार्ग का संक्रमण 
          Q10. मधुमेह से ग्रस्त व्यक्ति के शरीर में क्या प्रक्रिया होती है? जब हम शर्करा को समुचित रूप से इस्तेमाल नहीं करते तो हमें अधिक भूख महसूस होती है क्योंकि शरीर को ऊर्जा देने वाले भोजन की आवश्यकता होती है। रक्त शर्करा कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्यपदार्थ शर्करा एवं स्टार्च का व्यूप्तपाद्य है। भोजन के पाचन के फलस्वरूप स्टार्च शर्करा में परिवर्तित हो जाते हैं। एक साधारण व्यक्ति में शर्करा की तात्कालिक आवश्यकता से ऊपर की अतिरिक्त मात्रा संग्रहित कर ली  जाती है जबकि मधुमेह से ग्रस्त व्यक्ति में यह क्रिया सफलतापूर्वक संपन्न नहीं हो पाती इसलिए गुर्दों को शर्करा की अतिरिक्त मात्रा को मूत्र उत्सर्जन तंत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकलना पड़ता है। मधुमेह के संदर्भ में कई बार इन्सुलिन का उल्लेख आता है।
            Q12. यह इन्सुलिन क्या है?
   इन्सुलिन एक हार्मोन है जो अग्नाशय की कोशिकाओं में उत्पन्न होता है। रक्त परिसंचारण में स्रावित किए जाने पर यह उपापचय एवं शर्करा की उपयोगिता का अवसर देता है । इसकी खोज 1921 में हुई थी। उससे पहले मधुमेह से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए इलाज की बहुत ज्यादा गुंजाइश नहीं थी। इन्सुलिन का आविष्कार होने पर इसे मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए जीवनदायी औषधि माना गया । ऐसा माना जाता है कि इन्सुलिन, मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों को भी अन्य व्यक्तियों की तरह सामान्य जीवन जीने का असवर प्रदान करती है पर इसके लिए यह आवश्यकता है की मधुमे से ग्रस्त व्यक्ति खाने-पीने के बारे में कुछ पूर्व निश्चित नियमों का पालन करे और इन्सुलिन की निर्धरित मात्रा अपने शरीर में पहूँचाता रहे। भोजन नियंत्रण में ऐसे व्यक्ति को मादक द्रव्यों एवं मिठाइयों आदि से स्थायी रूप से दूर रहने के लिए कहा जाता है। इसके साथ ही मधुमेह से ग्रस्त व्यक्ति को उन तरीकों से रहने और उन पदार्थों को खाने की आदतों को परिवर्तित करने के लिए कहा जाता है जो मधुमेह उत्पन्न कर सकता हैं। 
          Q13. इन्सुलिन प्रतिक्रिया किसे कहते हैं ?
     इन्सुलिन की अधिक मात्रा शरीर में पहुँच जाने पर रक्त में शर्करा की मात्रा न्यून हो जाती है। इस स्थिति को हैपोग्लैसिमिया कहते हैं तथा इस प्रतिक्रिया को इन्सुलिन प्रतिक्रिया कहा जाता है। इस प्रतिक्रिया में सिर में हल्कापन, कांपना, अशस्क्त्ता, पसीना आना एवं भूख आदि लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। गंभीर प्रतिक्रिया की स्थिति में मधुमेह से ग्रस्त रोगी अपनी चेतना खो सकता है। दूसरी ओर इन्सुलिन की मात्रा में कमी, अधिक मात्रा में वसा अम्लों को एकत्र कर देती है । यह पूरे तंत्र की विषाक्त बना देते हैं जिसे रक्ताम्लता कहते हैं। अंततोगत्वा यह स्थिति मधुमेही संमूर्छा में बदल जाती है और यदि तत्काल इसकी चिकित्सा न की गयी तो रोगी जीवन को खतरा हो सकता है। साधारणत: आजकल मधुमेही संमूर्छा की स्थिति नहीं आने पाती लेकिन आपने आहार के प्रति लापरवाही बरतने एवं इन्सुलिन लेने वाले रोगियों द्वारा उसकी समुचित मात्रा न लेने से कभी भी यह स्थिति आ सकती है । 
           Q14. मधुमेह के बढ़ने की स्थिति किन चीजों पर निर्भर करती है ?
    मधुमेह के बढ़ने की स्थिति कई कारकों पर निर्भर करती है । आयु एक कारक हो सकती है । अनुवांशिक परिस्थतियाँ भी एक कारक हो सकती हैं । इसके अलावा रहन सहन की हमारी गलत आदतें भी हमारे शरीर को प्रभावित करती हैं । 
               Q15. अनियंत्रित मधुमेह के क्या लक्षण हैं ?
   प्रारम्भिक अवस्था में इसका प्राय: कोई विशेष लक्षण दिखायी नहीं देता किन्तु जब रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ने लगता है तो निम्नलिखित में से कोई एक या अधिक लक्षण दिखायी दे सकते हैं –
1.आँखों के लेंस दे आकार का बदलना जिससे नेत्रज्योति धुंधली होने लगती है ।
2.रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ने से बाहरी संक्रमण के प्रति शरीर का रक्षातंत्र कमजोर पड़ जाता है परिणामस्वरूप त्वचा, मूत्र एवं फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है ।
3. मूत्र का प्रवाह बढ़कर बार- बार मूत्र त्याग के लिए जाना पड़ता है ।
4.बार-बार मूत्र त्याग करने से शरीर का संचित द्रव खर्च होने लगता है । परिणाम स्वरुप प्यास बढ़ जाती है ताकि खर्च हुए द्रव की पूर्ति की जा सके ।
5.बार–बार मूत्रत्याग से शरीर के लिए आवश्यक कई रासायनिक पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं जिससे शरीर में थकान, कमजोरी और पैरों में एंठन होने लगते हैं तथा वजन भी कम होने लगता है ।
6.शरीर से अत्याधिक द्रव के निकल जाने पर निर्जलीकरण की स्थिति आ जाती है । साँस लेने में रूकावट आने लगती है तथा कई बार रोगी मधुमेही संमूर्छा में चला जाता है ।
             Q16. एक स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में शर्करा का सामान्य स्तर क्या होना चाहिए? ऐसे लोगों में जिन्हें मधुमेह नहीं है प्रात: खाली पेट रक्त शर्करा का स्तर ( रात भर उपवास करने के पश्चात् ) 90 मि. ग्रा./डीएल. तथा भोजन के पश्चात् 145 मि. ग्रा./डीएल. होना चाहिए। अनियंत्रित मधुमेह की स्थिति में यह 500 मि. ग्रा./डीएल. या इससे भी अधिक हो सकता है। 
            Q17. क्या मधुमेह के प्रत्येक रोगी को कभी न कभी इसकी जटिलताओं का शिकार होना पड़ सकता है?
  ऐसा आवश्यक नहीं है। यदि मधुमेह को अच्छी तरह से नियंत्रित किया जाए, पर्याप्त सावधानी रखी जाए तथा मोटापे आदि रोगों से बचा जाए तो अधिकांश जटिलताओं को सीमित किया जा सकता है । फिर भी पूर्ण रूप से नियंत्रित मधुमेह का रोगी भी किसी एक या अन्य जटिलताओं से पीड़ित हो सकता है।
           Q18. मधुमेह के अनियंत्रित हो जाने के क्या कारण हैं ?
    रोगी की दिनचर्या से संबंधित बहुत सारी चीजें उसके रक्त में शर्करा के स्तर को प्रभावित कर सकती हैं । इनमें से प्रमुख हैं – 1. शारीरिक श्रम कसा अभाव -आहार नियंत्रण का अभाव
2. कतिपय औषिधियाँ
3. तनाव,
            एवं
4.संक्रमण उपयुर्क्त कारणों से रक्त में शर्करा का स्तर बढ़कर मधुमेह को अनियंत्रित कर सकता है ।

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जीवन भर स्वस्थ्य रहने का उपाय।

ये छोटे-छोटे नियमों का पालन नियमित रूप से करोगे तो..
जीवन भर स्वस्थ्य रहोगे

1. हमेशा पानी को घूट-घूट करके चबाते हुए पिये और खाने को इतना चबाये की पानी बन जाये। किसी ऋषि ने कहा है कि.. “खाने को पियो और पीने को खाओ”।

2. खाने के 40 मिनट पहले और 60-90 मिनट के बाद पानी पिये और फ्रीज का ठंडा पानी, बर्फ डाला हुआ पानी जीवन मे कभी भी नही पिये। केवल गुनगुना या मिट्टी के घड़े का पानी ही पिये।

3. सुबह जगने के बाद बिना कुल्ला करे 2 से 3 गिलास पानी ‘सुखआसन’ मे बैठकर पानी घूटं-घूटं करके पियें, यानी उषा पान करे ।

4. खाने के साथ भी कभी पानी न पियें। जरुरत पड़े तो सुबह ताजा फल का रस, दोपहर मे छाछ और रात्रि मे गर्म दूध का उपयोग कर सकते हैं।

5. भोजन हमेशा ‘सुखासन’ मे बैठकर करे और ध्यान खाने पर ही रहे, मतलब टेलीविजन देखते, गाने सुनते हुए, पढ़ते हुए, बातचीत करते हुए कभी भी भोजन न करे।

6. हमेशा बैठ कर खाना खाये और पानी पिये। अगर संभव हो तो ‘सुखासन’ या ‘सिद्धासन’ मे बैठ कर ही खाना खाये।

7. फ्रीज़ मे रखा हुआ भोजन ना करें या उसे साधारण तापमान में आने पर ही खाये.. दुबारा कभी भी गर्म ना करे।

8. गूँथ कर रखे हुये आटे की रोटी कभी न खाये, जैसे कुछ लोग सुबह में ही आटा गूँथ कर रख देते है और शाम को उसी से बनी हुई चपाती खा लेते है, जो स्वास्थ के लिए हानिकारक है। ताजा बनाए ताजा खाये।

9. खाना खाने के तुरंत बाद पेशाब जरूर करे, ऐसा करने से डायबिटज होने की समभावना कम होती हैं।

10. मौसम पर आने वाले फल, और सब्जियाँ ही उत्तम है.. इसलिए बिना मौसम वाली सब्जियाँ या फल ना खाये।

11. सुबह मे पेट भर भोजन करें। जबकि रात मे बहुत हल्का भोजन करें।

12. रात को खीरा, दही और कोई भी वात उत्पन्न करने वाली कोई चीज ना खाये।

13. दही के साथ उड़द की दाल ना खाये। जैसे दही और उड़द की दाल का बना हुआ भल्ला।

14. दूध के साथ नमक या नमक की बनी कोई भी चीज ना खाये, क्योंकि ये दोनों ही एक दूसरे के प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

15. दूध से बनी कोई भी दो चीजे एक साथ ना खाये।

16. कोई भी खट्टी चीज दूध के साथ ना खाये, सिर्फ एक खा सकते है आँवला। खट्टे आम का शेक ना पिये, केवल मीठे पके हुए आम का ही शेक पीये ।

17. कभी भी घी और शहद का उपयोग एक साथ ना करे, क्योंकि दोनों मिलकर विष बनाते है।

18. खाना भूख से कम ही खाये। जीने के लिए ही खाना खाये, ना कि खाने के लिए जीये।

19. रिफाइण्ड तेल जहर हैं, आप हमेशा कच्ची घाणी का सरसो, तिल या मूगंफली का तेल ही उपयोग करे और जीवन मे हार्ट-अटेक व जोडो के दर्द से बचे।

20. तला और मसालेयुक्त खाना खाने से बचे। अगर ज्यादा ही मन हो तो सुबह मे खाये.. रात मे कभी भी नहीं।
21. खाने मे गुड़ या मिश्री का ही प्रयोग करें, चीनी के प्रयोग से बचें।

22. नमक का अधिक सेवन ना करें। आयोडिन-युक्त समुद्री नमक का उपयोग बिल्कुल भी नही करे.. सेधां, काला या डली वाला नमक इस्तेमाल करें।

23. मैदा, नमक और चीनी ये तीनों सफ़ेद जहर है, इनके प्रयोग से बचें।

24. हमेशा साधारण पानी से नहाएँ और पहले सर पर पानी डाले, फिर पेरो पर और अगर गरम से नहाओ तो हमेशा पहले पैरो पर.. फिर सर पर पानी डालना चाहिये।

25. हमेशा पीठ को सीधी रख कर बैठे।

26. सर्दियों मे होंठ के फटने से बचने के लिए.. नहाने से पहले अपनी नाभि मे सरसों का तेल लगाये । इससे जबरदस्त लाभ मिलता है।

27. शाम के खाने के बाद 2 घंटे तक ना सोये। 5 से 10 मिनट ‘वज्रासन’ मे बैठे 1000 कदम ‘वाक’ जरूर करें।

28. खाना हमेशा ऐसी जगह पकाया जाये, जहां वायु और सूर्य दोनों का स्पर्श खाने को मिल सके।

29. कूकर मे खाना ना पकाए, बल्कि किसी खुले बर्तन मे बनाए। क्योकि कूकर मे खाना उबलता है और खुले बर्तन के अन्दर खाना पकता हैं.. इससे खाने में प्रोटीन मात्रा 93 प्रतिशत होती है और कूकर मे मात्र 13 प्रतिशत रहती है।

30. एल्मुनियम के बर्तनो का प्रयोग खाना बनाने और खाने के लिए कभी भी ना करें। केवल पीतल, कासां, मिट्टी के बर्तन का ही उपयोग ही करें।

31. खाने को कम से कम 32 बार चबाये। खाने में सलाद और रोज ताजे फलों का सेवन करते रहें।

32. रोज टूथब्रश का प्रयोग ना करें, इससे मसूड़े कमजोर होते है। दंतमंजन का प्रयोग कर सकते है।

33. अपनी दोनों नासिकाओ मे देशी गाय के घी को हल्का गुनगुना करके 2-2 बुंद रात मे डालने से दिमाग तंदरुस्त रहता है। नजला जुकाम, सिर दर्द, माइग्रेन, नींद नहीं आना, तनाव आदि समस्या का समाधान होता हैं।

34. हमेशा मीठा, नमकीन से पहले ही खाना चाहिए।

35. बार-बार नहीं खाना चाहिये, सिर्फ एक बार बैठ कर भरपेट या उससे थोड़ा कम भोजन ही खाना चाहिये।

36. हमेशा ‘सकारात्मक’ सोचना चाहिये। ‘नकारात्मक’ सोचने से भी बीमारियाँ आती है।

37. सुख हो या दुःख, हमेशा अपने ईश्वर की नियमित आराधना करते रहे।

38. रोज सूर्योदय से पहले उठें और आधे घण्टे तक शुद्ध हवा का आनंद लेते हुये.. सुबह की सैर जरूर करें।

39. 5 मिनट से 15 मिनट रोज सुबह खुली जगह पर ‘पद्मासन’ या ‘सुखासन’ में बैठकर ‘अनुलोम-विलोम प्राणायाम’ जरूर करें।

40. दिन भर घर-बाहर-कार्यालय अथवा कहीं भी हर-पल प्रसन्न और तनाव मुक्त रहने की कोशिश करें।

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सर्दियों में रात को सोने से पहले हल्‍दी वाला दूध पीने के फ़ायदे ।

सर्दियों में रात को सोने से पहले हल्‍दी वाला दूध पीने से बॉडी में आते हैं अनेक बदलाव
दूध पीना हमारी बॉडी के लिए बहुत फायदेमंद होता है क्‍योकि इसमें कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन और विटामिन जैसे पोषक तत्व होते है। जो बॉडी को जरूरी पोषण देते है और शारीरिक कमजोरी दूर करते है। शायद इसलिए भी दूध को संपूर्ण आहार भी कहा जाता है। और हल्दी भी एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक है। जिसे लेने से अनेक रोग जड़ से खत्म हो जाते है। और अगर दोनों चीजों को मिला दिया जाए फिर तो सोने पर सुहागा हो जाता है।
1. रात को हल्‍दी वाला दूध मिलाकर पीने से बॉडी से विषैले टॉक्सिन बाहर निकल जाते हैं। जिससे आपका डाइजेस्टिव सिस्‍टम सही रहता है और आप पेट की बीमारियां जैसे गैस, एसिडिटी, कब्‍ज आदि से छुटकारा मिलता है। अगर आप भी चाहते हैं कि आपका पेट रोजाना सुबह साफ हो जाए तो हल्‍दी वाला दूध पीएं।
2. हल्दी वाले दूध पीने से त्वचा में भी निखार आता है। क्योंकि इसमें एंटीसेप्टिक व एंटीबैक्टीरियल जैसे गुण मौजूद होते हैं जो स्किन से संबंधित सभी रोगों जैसे इन्फेक्शन, खुजली, मुंहासे आदि को आपकी त्वचा से दूर भगाते हैं और उनके बैक्टीरिया को खत्म करते हैं, जिससे आपकी स्किन चमकदार होती है।
3. दूध में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है जिससे हड्डियां मजबूत होती है। अगर आप हल्दी वाला दूध पीते हैं तो इससे आपकी हड्डियों को मजबूती मिलेगी और आपकी इम्‍यूनिटी भी बढ़ जाएगी। साथ ही आपके दांत भी मजबूत होगें। और हल्‍दी वाला दूध पीने वाली महिलाओं को जोड़ों के दर्द की शिकायत दूर होती है। अगर आप रोजाना सोने से पहले हल्‍दी वाला दूध पीएंगी तो आपको अर्थराइटिस जैसी समस्‍याओं का सामना भी नहीं करना पड़ेगा।
4. जिन महिलाओं को रात में नींद नहीं आती उनके लिए हल्दी वाला दूध बहुत फायदेमंद है। कई बार तनाव या अन्‍य कई कारणों से हमें रात को नींद अच्छे से नहीं आती है। अगर आप को रात को नींद अच्छे से नहीं आ रही है तो बस यह घरेलू नुस्खा जरूर अपनाएं। हल्दी में अमीनो एसिड होता है। जिस कारण दूध के साथ इसके सेवन से नींद अच्छी आती है। अच्छी नींद के लिए रात को सोने से 30 मिनट पहले हल्‍दी वाला दूध लें।
तो आज से ही हल्‍दी वाला दूध पीना शुरू करदें ।

हल्‍दी वाला दूध बनाने का सही तरीका
दूध- 1 गिलास
हल्‍दी- 2 चुटकी
हल्‍दी का दूध बनाने के लिए 1 गिलास दूध में 2 चुटकी हल्‍दी मिलाकर अच्‍छे से उबाल लें। फिर इसे थोड़ा ठंडा होने दें। और रात को सोने से कम से कम 1 घंटा पहले पीएं।

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